“हर हर महादेव की गूंज से भर जाए जीवन,
सावन के व्रत से जागे आत्मा का शिवस्मरण।”
सावन व्रत का महत्व:
सावन में व्रत और उपवास के माध्यम से भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को सात्विकता व शांति की ओर ले जाते हैं।
🔱 पौराणिक आधार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावन महीने का विशेष महत्व समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा है। जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ, तब उसमें से निकले हलाहल विष को कोई संभाल नहीं सका। तब भगवान शिव ने अपनी करुणा और बलिदान भावना से उस विष को ग्रहण किया और उसे अपने कंठ में धारण कर “नीलकंठ” कहलाए। यह व्रत भगवान शिव के इस त्याग और करुणा की स्मृति है, जो हमें त्याग, सहनशीलता और भक्ति का मार्ग दिखाता है।
“व्रत से केवल भूख नहीं मिटती, बल्कि आत्मा का अहंकार भी गलता है।”
आध्यात्मिक महत्व:
सावन का व्रत मन और आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। यह ध्यान, साधना और शिवभक्ति का समय है, जो भक्त को अपने भीतर की शांति और ईश्वर से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
शारीरिक लाभ:
उपवास पाचन तंत्र को आराम देता है।
यह शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है।
मानसून में होने वाली बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
🕉️ सावन व्रत और उपवास के नियम
सावन में व्रत और पूजा के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन भक्तों को करना चाहिए:
व्रत का दिन:
प्रत्येक सोमवार को व्रत करें, क्योंकि सोमवार भगवान शिव का प्रिय दिन माना जाता है।
सात्विक भोजन:
फलाहारी व्रत रखें। सात्विक भोजन जैसे दूध, फल, साबुदाना, आलू, राजगिरा आदि का सेवन करें।
यदि स्वास्थ्य अनुमति दे, तो कुछ भक्त निर्जला व्रत भी रखते हैं।
पूजा की तैयारी:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें
ध्यान और योग से मन को स्थिर रखें।
शिव पूजा:
शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और बेलपत्र चढ़ाएँ।
गंगाजल से अभिषेक करें, धूप-दीप जलाएँ।
दान-पुण्य:
जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या सामग्री का दान करें।
“जब हर सांस में ‘ॐ नमः शिवाय’ गूंजने लगे, तब समझो सावन ने तुम्हारे मन को छू लिया है।”
हर हर महादेव!
लेखक :- सुरभी मोगरा




